योग वसिष्ठ के 7 चौंका देने वाले सत्य जो आपकी सोच को हिला देंगे

योग वसिष्ठ से 7 चौंकाने वाले सत्य

योग वसिष्ठ से 7 चौंकाने वाले सत्य


1. यह ब्रह्मांड असल में अस्तित्व में है ही नहीं

योग वसिष्ठ के अनुसार, यह संसार मृगतृष्णा की भांति है  एक भ्रम!
2017 में CERN के एक अध्ययन ने भी पदार्थ और प्रतिपदार्थ (matter & antimatter) की समानता को दर्शाया, जिससे यह निष्कर्ष निकला कि ब्रह्मांड को अस्तित्व में आना ही नहीं चाहिए था।

तो फिर हम और आप कैसे जीवन जी रहे हैं?
शायद यह सब एक सपना है!
ऋषि वसिष्ठ कहते हैं:
"मृगतृष्णा में जल न उत्पन्न होता है न समाप्त, वैसे ही यह जगत भी न ब्रह्म से उत्पन्न होता है न उसमें विलीन होता है। इसका कोई कारण नहीं, इसलिए इसका कोई आरंभ भी नहीं।"

2. संसार की रचना मन करता है

"मन ही संसार का सर्जक है, मन ही परम पुरुष है। शरीर से किया गया कर्म नहीं, मन से किया गया कर्म ही कर्म है।"

इसका अर्थ हैआपका जीवन आपकी सोच की उपज है।
जो आपने पाँच दिन पहले या पाँच वर्ष पहले सोचा, वही आज की हकीकत बन गई।
योग वसिष्ठ हमें यह सिखाता है कि हमारे विचार ही हमारे जीवन की नींव हैं।

3. समय निरपेक्ष है

आइंस्टीन की 'सापेक्षता की थ्योरी' की तरह योग वसिष्ठ भी समय को निरपेक्ष बताता है।
ऋषि वसिष्ठ एक कथा के माध्यम से बताते हैं कि एक रानी को देवी सरस्वती उसके पिछले जन्मों में ले जाती हैं।
जब रानी सुनती है कि उसके पूर्व जन्म का पति मरे हुए केवल आठ दिन हुए हैं, तो वह चकित हो जाती है।
देवी सरस्वती कहती हैं:
"सपने की भांति जन्म, मृत्यु और संबंध एक क्षण में घटते हैं।"

4. पृथ्वी के बाहर भी जीवन है

ऋषि वसिष्ठ स्पष्ट रूप से कहते हैं कि सिर्फ इस ब्रह्मांड में ही नहीं, बल्कि अनगिनत अन्य ब्रह्मांडों में भी भिन्न-भिन्न प्राणियों का अस्तित्व है।
"राम, जैसे इस ब्रह्मांड में अनेक प्राणी हैं, वैसे ही अन्य ब्रह्मांडों में भी विभिन्न रूपों में प्राणी रहते हैं।"

5. हम एक मृत सत्ता (मन) से प्रभावित होते हैं

मन स्वयं में एक निर्जीव सत्ता है फिर भी इसकी कल्पनाएँ और विचार हमें रुला देते हैं, डराते हैं।
ऋषि वसिष्ठ कहते हैं:
"मन का कोई रूप नहीं, कोई ठोस आधार नहीं; फिर भी यह सम्पूर्ण जगत को चला रहा है।"
जैसे पूर्णिमा की चंद्र किरणें किसी को जला नहीं सकती, वैसे ही यह मन केवल भ्रम है फिर भी हम इसकी गिरफ्त में हैं।

6. अगर आप मन को नहीं समझते, तो डर आपका पीछा नहीं छोड़ेगा

"जो मन की सच्चाई नहीं समझता, वह शास्त्र ज्ञान के योग्य नहीं। उसका मन डर से भरा होता है। वह वीणा की मधुर ध्वनि से डरता है, सोते हुए परिजन से भी डर जाता है।"

हमारी चिंताओं, डर और शंकाओं की जड़ यही है हम मन की सीमा नहीं पहचानते।

7. भाग्य का कोई अस्तित्व नहीं

ऋषि वसिष्ठ कर्म को सर्वोपरि मानते हैं, भाग्य को नहीं।
"भाग्य एक ऐसा भ्रम है जिसे बार-बार दोहराने से सत्य मान लिया गया है। अगर भाग्य ही सबकुछ तय करता है, तो कर्म का क्या औचित्य?"

वे स्पष्ट कहते हैं —
"जो कहता है कि मैं भाग्य के अनुसार काम कर रहा हूँ, वह मूर्ख है और लक्ष्मी (सौभाग्य) उससे दूर चली जाती है।"

समापन:भगवान श्रीराम जब निराशा में डूबे थे, तब ऋषि वसिष्ठ ने उन्हें योग वसिष्ठ के गहन ज्ञान से जीवन का सत्य बताया।

यह ग्रंथ उन सभी के लिए मार्गदर्शक है जो जीवन, अस्तित्व और दुःख के कारणों को जानना चाहते हैं।

गुरुदेव श्री श्री रविशंकर कहते हैं:
“योग वसिष्ठ को बार-बार पढ़ना चाहिए। हर बार कुछ नया समझ में आता है।”


क्या आप योग वसिष्ठ पढ़ चुके हैं? नीचे कमेंट करें और बताएं कि इस ग्रंथ से आपको क्या सीख मिली!

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